जलाशय के किनारे में एक कुहारी थी
जलाशय के किनारे में कुहरी थी,
हरे _ नली पत्तों का घेरा था ,
पानी पर आम की डाल आई थी,
गहरे अंधकार का डेरा था,
किनारे सुनसान थे, जुगनू के लिए
दल दमके _ यहां _ वहा चमके,
वन का परिमल लिए मलय बहा,
नारियल का पेड़ हिले क्रम से,
ताड़ खड़े रहे थे सबको,
पपीहा पुकार रहा था छिपा,
स्यार विचरते थे आराम से,
उजाला हो गया और तारा छिपा,
लहरें उठती थीं सरोवर में,
तारा चमकता था अंतर में।
__ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, छायावाद_ के प्रतिनिधि कवि हैं। उनका जन्म 1896 ई. मे पशिच्म बंगाल के मेदिनीपुर जिलांतर्गत महिषादल नामक स्थान पर हुआ था । निरालाजी ने कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी आदि सभी विधाओं में रचना की थी । उन्होंने सामान्य, मतवाला और माधुरी पत्रिकाओं का भी संपादन किया था । उनकी प्रमुख काव्य रचनाएं है_ अनामिका, परिमल, गीतिका , तुलसीदास, बेला, कुकुरमुत्ता, नए पत्ते, अपरा आदि । 1961 ई. में निराला जी का देहावसन हुआ । RecentPost**